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कविता

ममेदम

भवानीप्रसाद मिश्र


मेरे चलने से
हुए हो तुम
पथ

और
रथ हुए हो तुम
मेरे रथी होने से

रात बनोगे तुम
मेरे सोने से
और प्रभात मेरे जागने से !

 


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